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छल कपट बना अस्त्र

छल कपट बना अस्त्र

घोर कलियुग छाया है ,
छल कपट बना अस्त्र ।
लूट मार से भयाक्रांत है ,
शोषण दोहन बना शस्त्र ।।
कहीं एक हो तो बताऊॅं ,
न ही कहीं यह यत्र तत्र ।
घर घर देखो छाया यह ,
यहाॅं वहाॅं और ये सर्वत्र ।।
आज एक न मिले ऐसा ,
बोले शत प्रतिशत सत्य ।
आज लगे विश्व में ऐसा ,
मिथ्या पे निज अधिपत्य ।।
जाते द्वापर यह ऐसा बना ,
कलियुग में सत्य असत्य ।
सत्य छोड़ मिथ्या अपनाया ,
मिथ्या मार्ग ले हुआ गत्य ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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