जीवन पथ के संघर्षों से हमने, आगे बढना सीखा,
उबड खाबड राह में काँटें, स़ँभल कर चलना सीखा।बहुत सिसकियाँ सुनी सभी ने, बेबस बेटी बहनों की,
संस्कारों के बीज रोपकर, मानवता हित बढना सीखा।
जब भी लिखी पीर जगत की, खुद उलझा उसमें पाया,
सकारात्मक जब भी सोचा, अन्धकार में जीना सीखा।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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