जब तक
---: भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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जब तक
अपने चिंतन को
नहीं दिया जाता है
कोई मूर्त रूप
तब तक वो
नहीं होता है कहीं
स्वयं स्फूर्त
अपने पढ़ा और सुना है
मेरा कहना तो बस नमूना
बिना क्रिया का ज्ञान
होता है मृतक समान
मत बन तू अंजान नादान
अरे पाखंडी धूर्त
लगती होगी मेरी बात कड़वी
पर इससे नहीं पड़ने वाला है फर्क
संभालना होगा खुद को औरों को
जो भोगना नहीं चाह रहे है ये नर्क
खुदका कर के छिछालेदर
और अपनी चेतना को कूर्क
हुए हैं जितने भी ज्ञानी
उन्होंने कर्म पर दिया है बल
और तुम चिंतन में लगे रहे केवल
तभी तो हो गये दीन,हीन,निर्बल
कब समझोगे मेरी बात
अरे ओ युवा तुर्क
ये अकर्मण्यता की कहानी
रोज खड़ी करेगी परेशानी
छुटते रहेगें अपने टूटते रहेगें सपने
न नामलेवा रहेगा न कोई निशानी
एक एककर टूट रहा तेरा ओ स्वप्न
ये छत्र ये चंवर ये सिंहासन ये दुर्ग
----------------------------------------वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
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