रिश्ते ढह गए
"रिश्ते ढह गए"
मौसम भी क्या-क्या रंग बदलता,
इंसा का ईमां हमने बदलते देखा।
यूंही बदनाम है ये बेचारा गिरगिट,
इंसानों को ज्यों रंग बदलते देखा।
कुछ को कहते कुछ को सहते देखा,
कुछ को संकोच में कहते रहते देखा।
मैं सही और तुम गलत के इस खेल में,
हमने न जाने कितने रिश्ते ढहते देखा।
प्यार का रिश्ता भी हमने टूटते देखा,
दोस्ती को दुश्मनी में बदलते देखा।
हर किसी को अपने फायदे के लिए,
रिश्तों के सौदे - तिजारत करते देखा।
अपने रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए,
सच्चाई - ईमानदारी से दूर भागते देखा।
इसलिए आज ये रिश्ते टूटते जा रहे हैं,
और लोग तन्हा-अकेले होते जा रहे हैं।
"कमल" अब हमें यह सोचना चाहिए,
कि हम किस तरह से रिश्ते निभाते हैं।
स्वरचित एवं मौलिक
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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