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काश , वो बरसात एक बार फिर से होती ।

काश , वो बरसात एक बार फिर से होती ।

 जय प्रकाश कुंअर
काश , वो बरसात एक बार फिर से होती ।
मन में आनंद भरती , वो तन को फिर भिंगोती ।।
भाग कर छुपते थे पेड़ के नीचे , पर बच तो थे न पाते ।
झमाझम बारिश में हम दोनों , खुब भींग जाते ।।
इतने करीब से उस भींगे बदन को निहारती थी आंखें ।
अरमान मचलते थे और फुलती थी सांसें ।।
मन कहता था कि ये बरसात यों ही पड़ता जाये ।
थम कर के एक बार फिर हमारी दूरी न बढ़ाये ।।
दिन कितने पीछे छूट गए पर एहसास नहीं मरता है ।
अपने पुराने दिनों को यह याद हर पल करता है ।।
खट्टी मीठी यादें ही हर जीवन की कहानी है।
उन एहसासों को जीवंत कर ही , जीवन आगे बढ़ती जानी है ।। 
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