गाना-वाना छोड़ दिया है।
-- डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
गाना-वाना छोड़ दिया है।
साथी, जब से कगरी टूटी, दरिया जाना छोड़ दिया है।
यह मत समझो,अपना दुखड़ा
तुम्हें सुनाने मैं बैठा हूँ ।
यह मत सोचो, अपना सिक्का
तुमसे भुनाने मैं बैठा हूँ ।
बेमतलब की बातचीत से मन बहलाना छोड़ दिया है।
अहम्मन्य तत्त्वों के मुख पर
द्वार मुकफ्फल कर बैठा हूँ।
तत्त्व- साधकों की सरणी में
मुक्तहृदय तत्पर बैठा हूँ।
मत-वाले मतवालों से संपर्क बढ़ाना छोड़ दिया है।
कुटिल काक के काँव-काँव से
दूरी रखना प्रेयस्कर है ।
हंस मिलें दो-चार अगर तो,
सन्निधि करना श्रेयस्कर है। लफ्फाजों की फुसूँगरी में मन भटकाना छोड़ दिया है ।
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