Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

आठ परिघ से निकल नाव

आठ परिघ से निकल नाव

डॉ रामकृष्ण मिश्र
आठ परिघ से निकल नाव
जाने किस तट तक जाएगी।
जहाँ क्षितिज से गगन मिलेगा
उस पडाव जा पाएगी।।


लहरों के उत्ताल - तरंगों में
उत्साह भरा था नव रस।
भँवरों में परिवर्तमान संदेश लिए
भावी का सर्वस।।
अंजलि में पीड़ा की छाया
कब तक साथ निभाएगी।।


दूर-दूर तक धारा में
नावों का मेला सा दिखता है।
कहाँ बैठकर, कौन बही पर
लेखा भी सबका लिखता है।
अंधी रातों में सपनो की
बाती कहाँ सुलग पाएगी।।


बहुत उलीचे गये धान के दाने
गोरैयों के आगे।
कुछ तो चुगे गये मोती- से
कुछ को अनपेक्षित ले भागे।।
थकी नहीं लगती हैं साँसें
शायद अभी और गाएगी।।
रामकृष्ण
उत्तिष्ठन्तु महाविष्णु:
राष्ट्रधर्म च रक्षय।
विश्वे स्वार्थानुरागेन
निर्मित रौरवम् नरक।।
*********
रामकृष्ण
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ