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चुनाव

चुनाव

कहे भारत माता सुनो मतदाता ,
हर शहर और हर गाॅंव रे ।
संभलकर रहना तुम सब सदा ,
आ गया है फिर चुनाव रे ।।
नेता जाएंगे अब तेरे घर पर ,
फिर पकड़ने तेरे पाॅंव रे ।
हर रूप में तुझे लुभाने को ,
फेंकेंगे अपने हर दाॅंव रे ।।
सोच समझकर प्रत्याशी चुनना ,
मत देखना उनके भाव रे ।
पल पल में गिरगिट जैसा वे ,
बदलेंगे अपने ही छाव रे ।।
मति से अपने मतदान करना ,
मत धरना तुम भी ताव रे ।
लड़ाई झगड़ा मत करना तुम ,
मन में रखना‌ मत घाव रे ।।
कुशल प्रवीण नेता तुम चुनना ,
मन में रखकर तुम चाव रे ।
भटकाने से तुम मत भटकना ,
स्थिर रहना तुम निज ठाॅंव रे ।।
नेतृत्वकर्ता हो दृढ़ संकल्पित ,
जो नदिया पार करे नाव रे ।
सुन सके बात जनता की और ,
देशभक्ति की न हो अभाव रे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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