मेरी कलम अब भी प्रेम उगलती है,
हालांकि ,अब मैं बुढ़ा हो गया हूं ।दूनियां वालों के बीच लगता है कि ,
उम्र के अनुसार प्रेम का आरक्षण है ।
प्रेम चर्चा का अधिकार उन्हीं को है ,
जिनके पास जवानी का लक्षण है ।
लगता है दूनियां की निगाह में ,
उम्र के साथ प्रेम भी मर जाता है ।
रह जाती है तो केवल जर्जर काया ,
प्रेम का भाव शरीर से उतर जाता है ।
प्रेम कोई नुमाइश और दिखावा नहीं है ,
यह ईश्वरीय देन है , जो अंतर्मन से उठता है।
यह बिना भेद भाव किये ,
हर उम्र के इंसान के दिल में वसता है ।
प्रेम अमर है वह शरीर के साथ ही जाता है ,
प्रेम और वासना में भेद लोगों के समझ में नहीं आता है ।
प्रेम प्रेम है ,शरीर चाहे बुढ़ा है या जवान है ,
प्रेम का सफर, जीवन ही नहीं , पवित्र श्मशान है ।
जय प्रकाश कुंअर
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