गौ रक्षा


गौ रक्षा

गौ हमारी कहलाती माता ,
गौ सेवा करना ही कर्म है ।
गौ हमारी पालन है करती ,
गौ रक्षा करना ही धर्म है ।।
गौ को जो देता यह दुःख ,
नहीं आंखों में उसे शर्म है ।
गौ माता हत्या करनेवाला ,
होता बहुत वह बेशर्म है ।।
गौ दूध देकर हमें पालती ,
गोबड़ दे उपज बढ़ाती है ।
गौ हमारा जीवन पालक ,
जीवन अर्पण कर जाती है ।।
गौ हमारी जीवन रक्षक ,
हम उसके‌ बहुत आभारी हैं ।
गौ नहीं सोचती आपने हेतु ,
गौ होती ही परोपकारी है ।।
गौ सेवा हमें भी करनी होगी ,
गौ रक्षा हेतु हमें लड़ना होगा ।
गौ रक्षा हेतु प्राण हो अर्पण ,
किंतु गौ रक्षा करना होगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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