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मेरी आवाज़ को सुनकर यदि आये न तुम कान्हा,

मेरी आवाज़ को सुनकर यदि आये न तुम कान्हा,

तो मैं रूठ जाऊँगी, यह बचपन की आदत है।
अगर राधा बिन आये, तो इतना ध्यान रखना तुम,
मैं तुमको भी भुला दूँगी, यह बचपन की आदत है।


अगर रुक्मणी के संग, सुभद्रा को भी ले आये,
करूँगी सब समर्पण मैं, यह पचपन की आदत है।
करेंगे रास लीला हम, बंशी तेरी सुन सुन कर,
मैं खुद को वार दूँ तुझ पर, यह पचपन की आदत है।

अ कीर्ति वर्धन
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