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अति ( ज्यादती )

अति ( ज्यादती )

कहते हैं कि भगवान की भक्ति एवं उनका नाम स्मरण के अलावा मनुष्य को और किसी काम में अति करना अहितकर साबित होता है। इसीलिए अति करना सर्वथा बर्जित है । इस संबंध में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है " ज्यादा अति न कर अति " ।
संसार में अतित में ऐसी बहुत सारी घटनाएं हुई हैं जिनको देखकर यही लगता है कि अति करने वालों का हश्र अंततः उनका नाश ही हुआ है , भले ही वो कितने भी महान एवं बलशाली क्यों न रहे हैं ।
इस लिए यह नीति श्लोक हम मनुष्यों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
अतिदर्पे हता लंका ,अतिमाने च कौरवा: ।
अति दाने बलिर्बद्ध , अति सर्वत्र वर्जयेत ।
इनमें रावण ऋषि पुलस्त्य के वंशज थे ।वो प्रबल - प्रतापी , विद्वान और बलशाली थे तथा लंका के राजा थे । उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी । परंतु अपने घमंड और अभिमान के चलते उनका नाश भगवान श्री राम के हाथों हुआ ।
कौरव भी महान भरतवंशी राजा कुरू के वंशज थे । वे भी महान बलशाली थे । परंतु उनका भी नाश उनके घमंड और अभिमान के चलते ही महाभारत के युद्ध में हुआ ।
राजा बलि असुरराज हिरण्यकश्यप के पुत्र महान विष्णु भक्त प्रह्लाद के वंशज थे । वे अपने दान देने की प्रवृत्ति के लिए विख्यात थे। वो भी अपने इसी घमंड और अभिमान के चलते अपना नाश भगवान विष्णु अवतार बामन भगवान के हाथों कर बैठे । इसीलिए नीतिगत रूप से किसी भी कार्य में अति अथवा ज्यादती करने की मनाही की गई है । ऐसा करने से लाभ के जगह नुकसान होने की ही ज्यादा संभावना रहती है ।
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