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समय चक्र

समय चक्र

जय प्रकाश कुंअर
समय का पहिया चलता जाये ।
बिना थके ओ बिना रुके यह,
अपना क्रम बदलता जाये ।।
आम के मोले पेड़ बन गए,
बच्चे आज अधेड़ बन गए ।
वो अधेड़ जो कभी दबंग थे ,
आज सभी अतीत बन गए ।।
जन्मे थे जो बिना दांत के ,
दांत भी आकर झड़ने लगे हैं ।
गयी चमक आंखों की उनकी ,
चश्में उन पर चढ़ने लगे हैं ।।
घुटने चल कर खड़े हुए थे ,
फिर घुटने पर आने को है ।
काले बाल तो खुब सजाये ,
अब तो सफेदी छाने को है ।।
पहला क्रम था खेल कूद का ,
फिर बारी पढ़ाई की आयी ।
बीती जवानी रोजी रोटी में ,
अंत की सुध कभी नहीं आयी ।।
भौतिक सुख में अन्धे होकर ,
पैसा तुमने खुब कमाया ।
सब छुटना था यही अभागे ,
संग जाने वाला कुछ न कमाया ।।
सत्कर्मो से दूर रहा तुम ,
दुष्कर्मों का बाग लगाया ।
जाना कि यह बिष फल देंगे ,
फिर भी तुमको चेत न आया ।।
अपना जिन्हें समझ कर तुमने ,
जिन लोगों में नेह लगाया ।
धीरे धीरे दुर हुए सब ,
सबने ही तुमको ठुकराया ।।
जोड़ा नेह नहीं श्री हरि से ,
जो थे बेड़ा पार लगाने वाले ।
नाते नेह उन्हीं से जोड़ा ,
जो थे अंततः ठुकराने वाले ।।
अब भी तुम प्रतिपदा में अठके हो ,
जबकि पूर्णिमा भी है जाने वाली ।
कुछ भी हासिल कर नहीं पाये ,
खाली हो, जाओगे तुम खाली ।।
दादा दादी, पापा मम्मी ,
सबने दूनिया छोड़ दिया है ।
अब तो है तुम्हारी बारी ,
यही सत्य है, जोड़ लिया है ।।
सब कुछ जाना फिर भी तुमने ,
समय चक्र को समझ नहीं पाये ।
अच्छे दिन अब पीछे चले गए ,
अब क्या होगा व्यर्थ पछताये ।।
आयेगा नहीं चला गया कल ,
पकड़ो जो अब बीत रहा है ।
मिलेगा नहीं यह जीवन दुबारा ,
यह सफर तो सबके साथ होता है ।।
फेंको गठरी अपने सर से ,
अब भी समय है, चेत तुम जाओ ।
जायेगा साथ जो अंत काल में ,
उन हरि चरणों में नेह लगाओ ।।
दोष न देना समय चक्र को ,
उसने हर वक्त याद दिलायी है ।
जब जब कुछ छीना है शरीर से ,
तब तब उसने घंटी बजायी है ।।
अब न कहूंगा करो वही तुम ,
जो कुछ तेरे मन को भाये ।
दुषित कर्म या हरि भजन कर , समय का पहिया चलता जाये ।।
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