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" सरिता और सागर"

" सरिता और सागर"

तुम तरंगिणी हो, मैं हूं सागर,
तुम मेरी जीवनदायिनी प्रिया।
तुम तो निर्बाध गति से बहती,
मैं शांत-अविचल होकर रहा।


तुम तटबंधों को तोड़ती,
मैं तो सीमाओं में रहता।
तुम तो उछलती, कूदती,
मैं शांत-नीरव हो रहता।


तुम जीवन की उर्जा,
मैं जीवन का सागर।
तुम जीवन का संदेश,
मैं जीवन का आधार।


तुम उल्लास की कथा,
मैं धैर्य की शांत गाथा।
तुम हो जीवन की गति,
मैं जीवन का स्थायित्व।


तुम जीवन का रूप ,
मैं जीवन का सौंदर्य।
तुम जीवन का आनंद,
मैं इस जीवन का अर्थ।


हम दोनों तो विलग नहीं हैं,
हम दोनों का तो सार एक।
'कमल' हम दोनों जीवन हैं,
हम दोनों का उद्देश्य एक।


स्वरचित एवं मौलिक पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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