कार्त्तिक--अक्षयनवमी (अक्षया नवमी)के विशेष संदर्भ में

कार्त्तिक--अक्षयनवमी (अक्षया नवमी)के विशेष संदर्भ में

-- डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
इस विषय पर चर्चाएँ इधर-उधर सुनने को मिलीं--"नाम बड़ हैं दर्शन थोड़े "।ठीक ही प्रचारवादी युग ठहरा। कृपया नक्कारखाने में तूती की आवाज भी सुनने का कष्ट करें। मेरे इस आलेख की प्रेरणा कर्त्तव्य-पालनमात्र है।
कार्त्तिक मास का महत्त्व और महित्व अनेकधा परिश्रुत है। धन्वन्तरि-त्रयोदशी, दीपावली, यमद्वितीया षष्ठी-सूर्यव्रतादि व्रत-त्योहारों की पुण्यमयी श्रृंखला है।
मासों के नाम नक्षत्रपरक हैं, कहने की आवश्यकता नहीं।
कार्त्तिक मास तदनुसार कृत्तिका-परक है। कृत्तिकाधातृक होने से कार्त्तिकेय (शिव-पुत्र) अन्वर्थनामा हैं। कृत्तिका के अन्य पर्याय हैं--बहुला और ऊर्ज। अतः कार्त्तिकेय को बाहुलेय भी कहा जाता है। कृत्तिका 6 ताराओं से घटित है ,इसलिए कार्त्तिकेय षाण्मातुर' =षण्णां मातॄणाम् अपत्यम् कहलाते हैं। 'षडानन 'भी इनकी आख्या है-छः मुख होने के कारण। शिव के तेज को अग्नि ने धारण किया, अग्नि से गंगा ने, छः ताराओं वाली कृत्तिका द्वारा शरवण में
पालन हुआ ,इस प्रकार शरजन्मा, अग्निभू, बाहुलेय, षाण्मातुर, षडानन आदि इनके अनेकों नाम हो गए। ये देवसेनापति हैं, इसलिए 'सेनानी 'भी एक नाम है। षष्ठी देवी इनकी भार्या हैं। यह समस्त विवरण शिवपुराण, कुमार खण्ड में देखना चाहिए।
वैष्णव भक्त-समुदाय में कार्त्तिक दामोदर मास के नाम से प्रख्यात है। इसी मास में बाल कृष्ण की 'दामोदर-लीला संपन्न हुई थी। माँ यशोदा ने उन्हें उलूखल से बाँध दिया था। भागवत पुराण में यह प्रसंग सविस्तर वर्णित है।
अक्षयनवमी (अक्षया नवमी )कार्त्तिक शुक्लनवमी को संपद्यमान समधिक महत्वपूर्ण व्रत है। अचला नवमी भी कहते हैं। इसकी सबसे तात्पर्यपूर्ण संज्ञा है 'युगाद्या '।युगारंभक होने से युगाद्या कहा गया है। अक्षया तिथियाँ किंवा युगाद्याएँ चार हैं--वैशाख शुक्लतृतीया (अक्षयतृतीया),कार्त्तिक शुक्लनवमी (अक्षयनवमी),भाद्रपद कृष्णत्रयोदशी (अक्षयत्रयोदशी)और माघ अमावस्या (अक्षया अमावस्या)।युग चार होते हैं--सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि, अतएव युगाद्याएँ भी चार हैं।
यह चर्चा प्रादेशमात्र है ,संदर्भ -संकेतात्मक ।
"वैशाखमासस्य च या तृतीया नवम्यसौ कार्त्तिक शुक्लपक्षे।
नभस्यमासस्य च कृष्णपक्षे त्रयोदशी पञ्चदशी च माघे।
एता युगाद्या: कथिता पुराणेष्वनन्तपुण्यास्तिथयश्चतस्र:। ।(विष्णुपुराण, 3/14/12,13)
ये चारों तिथियाँ अत्यंत पुण्यदायिनी हैं।



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