"विकल्पहीनता"
विकल्पहीनता, होती शोषण की जननी है,जब इंसान के पास कोई चारा नहीं होता।
तब उसको अपनी ज़िंदगी बचाने के लिए,
अपने अधिकारों तक को बेचना पड़ता है।
मंहगाई और निराशा में डूबी जिंदगी,
जिसमें न हो कोई उजाला,
जिसमें न हो कोई भी आशा,
वहीं होती है, शोषण की शुरुआत।
जब इक इंसान के पास कोई विकल्प न हो,
जब अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए,
जब इंसानों को दूसरे पर निर्भर रहना पड़े,
तो वहीं उनके शोषण की संभावनाएं बढ़ें।
गरीब, शोषित और दलितों पर,
सबसे अधिक प्रभाव होता है।
उन्हें मजबूरन, कम वेतन पर,
खतरनाक काम करना पड़ता है।
यहां तक कि, उन्हें अपने शरीर तक,
बेचने के लिए मजबूर किया जाता है।
अपने बच्चे, अपनी मर्ज़ी के खिलाफ,
दूसरों के हाथों तक में बेचना पड़ता है।
राष्ट्र में राजनैतिक विकल्पहीनता है गंभीर दंश,
राजनैतिक सत्ताएं बनी उद्योगपतियों की चारण,
मुफ़्त राशन गरीबों को, बना सत्ताभोग का कारण,
आयकर की मार झेलता सिर्फ मध्यम वर्ग का वंश।
विकल्पहीनता, तो एक भयानक अभिशाप है,
जो इक इंसान को, इंसान ही नहीं रहने देती।
इस अभिशाप से समाज की मुक्ति का उपाय,
हम सभी को अब विकल्पहीनता लड़ना होगा।
हमको, विकल्पहीन और उदासीन समाज को,
उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना होगा।
निरंकुश सत्ता द्वारा समाज के शोषण के विरुद्ध,
भयमुक्त - जागृत कर, जनजागरण करना होगा।
स्वरचित एवं मौलिक पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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