श्मशान
श्मशान में ना कोई अमीर है , ना कोई गरीब है ।यहां सबका रिश्ता एक दूसरे के करीब है ।।
यहां सबका परिचय केवल मात्र लाश है ।
जल रहे हैं सभी, एक दूसरे के आस पास हैं ।।
जमीन भी एक है , नदी किनारा भी एक है ।
अग्नि भी एक है , लकड़ी काठ भी एक है ।।
अब तक जो भेद भाव करते यहां तक आए हो।
चढ़ गये हो चिता पर , अब सबसे पराए हो।।
कितना घमंड था अपने जाति,धन,बल ओ मान पर ।
आज लेटे हुए हो कफ़न लपेट, भूमि श्मशान पर ।।
कभी किसी शुद्र से तुम बदन न छुआते थे ।
ग़लती से छू गया तो इसी गंगा में नहाते थे ।।
उसी शुद्र के हाथों आज अग्नि तुमको पाना है ।
गंगा किनारे आज उसी अग्नि में जल जाना है ।।
आज उसी शुद्र की अग्नि से तुम्हारा मुखाग्नि होगा ।
बिदाई लेकर दूनियां से परलोक सिधारना होगा ।।
समय रहते दूनियां में जो इस बात को समझ जाएगा ।
उसका जीवन जाति धर्म ,उंच नीच से उपर उठ जाएगा ।।
जय प्रकाश कुंअर
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