दीवाली का अवसर है, उत्सव मनायें,
राम आये अयोध्या, चलो घर सजायें।अमावस्या की रात, तम गहन वाली,
गली गाँव सड़कों पर, दीपक जलायें।
खायें- खिलायें, घर बना कर मिठाई,
नयी फसल आगमन का, उत्सव मनायें।
जन जन को ख़ुशियाँ, और उपहार बाँटे,
गम का तम, ख़ुशी के दीपों से मिटायें।
मानसिक प्रदूषण भी, चहूँ और फैला,
ज्ञान के प्रकाश पुंजों से, अज्ञान भगायें।
हूँ दीप माटी का, तम से लड़ने को आतुर,
तेल बाती मिले संग, तो तम को हरायें।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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