पोते ने कहा दादाजी आज
देखना है मुझे मेरा गाँव।
मैं भी भला चुप क्यों रहता
ले आया पोते को पुस्तैनी ठाँव।
बोला आ बैठ जरा पहले
बूढ़े बरगद की छाँव
फिर दिखाता हूँ तुझको तेरा गाँव।
बहुत देखे होगे तूने शहर में
ऊँचे ऊँचे मकान
आज देख ले यहाँ
कच्चे पक्के खपरैल दलान
और भी देख कैसे होते हैं
खेत खलिहान।
सजे धजे मंदिरों के भीतर
देखा होगा तूने बहुत जगदीश
आ मिला दूँ तुझे ग्रामदेवी से
नवा के शीश ले ले आशीष।
लगा के जोड़
ले गन्ने को तोड़
दाँतों से रस निचोड़
मिलेगी मिठास बेजोड़
आज भी गाँव गिराँव में
तनिक देर बैठ जो गये
बूढ़े बरगद की छाँव में।@मनोज कुमार मिश्र"पद्मनाभ"।
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