महान कवयित्री और लेखिका महादेवी वर्मा ने अपने निबंध"घर और बाहर"मे बताया है कि नारी घर में यदि मां, बहन और पत्नी के रुप कुशल गृहिणी के रुप में रहती है तो घर के बाहर चिकित्सा के क्षेत्र में नर्स के रुप जो सेवा भाव दिखाती है वह अन्य किसी में दिखाई नहीं देता। शिक्षा के क्षेत्र में स्कूलों में शिक्षकों की अपेक्षा शिक्षिकाओं में बच्चों के प्रति ममत्व भाव अधिक होने के कारण ही स्कूल प्रशासक अपने विधालयों में नारी की नियुक्ति को प्रधानता देते हैं।
महान कवयित्री शुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता झांसी की रानी में लक्ष्मी बाई की विरता का वर्णन किया है।
देवासुर संग्राम में जब राजा दशरथ के रथ की धुरी टूट गई थी और हार सन्निकट थी तब कैकेयी ने धुरी की जगह अपनी उंगली डाल दशरथ के प्राण बचाई थी फिर भी नारी को अबला कहना नारी का अपमान है।
सत्यवान का प्राण हर जब यमराज वापस लौट रहे थे तब सावित्री के दृढ़ निश्चय के आगे हार मानकर यमराज को सत्यवान का प्राण वापस करने पड़े थे।
दुर्गा, सरस्वती और लक्षमी के चरणों मे बल, बुद्धि और धन की प्राप्ति के लिए सुबह से शाम तक लोटते हैं।
मध्यकालीन भारत की हाड़ा रानी को कौन नहीं जानता है जिसके पति युद्घ के मैदान से पत्नी के प्रेमपाश में बन्धकर वापस आ गए। तब हाड़ा रानी ने पति से कहा आपको चेहरे से प्रेम है न मैं अपना गरदन आपको अर्पित करती हूँ। और पल भर मे राजा पति के कमर में बन्धी मयान से तलवार खिंच अपना सर धड़ से अलग कर देती है। राजा उसी मुंड का माला पहन युद्ध भूमि में जाते हैं और विजय होकर लौटते हैं। वास्तव में कहा जाए तो जीत राजा की नहीं हाड़ा रानी की थी।
आधुनिक भारत की निर्मात्री ईंदिरा गांधी, प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, बंगला देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, ब्रिटेन की मारग्रेट थैचर आदि अनेकों महिलाओं ने राजनीति के मैदान मे अपने राजनैति कौशल का परिचय देकर दुनिया को दांतों तले उंगली दवाने को मजबूर किया है।
संगीत की दुनिया में विध्ययवासिनी देवी, सुरैय्या ,स्वर कोकिला लता जी, आशा जी की आवाज सुनने के लिए आज भी युवा वर्ग का दिल धड़कता है । बहुत से गीत आज का युवा भी गुनगुनाते देखे जाते हैं ।
विज्ञान के क्षेत्र मे मैडम क्यूरी को कभी भूलाया नहीं जा सकता जिसने रेडियम की खोज कर एक नई क्रांति का उद्घोष किया था।
अंतरिक्ष मे पहला कदम रखनेवाली कल्पना चावला के आगे सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक है।
शांति पुरस्कार पाने वाली 17 वर्ष की मलाला की विरता की गाथा को याद न करना शायद इससे बड़ा अपराध कुछ भी नही हो सकता।
अंत में उस नारी को जिसने नौ माह तक गर्भ में रखा और उस नारी को जिसने चिकित्सक के रुप में एक गर्भ से बाहर निकाल मां धरती की गोद में बैठा दिया यदि तीनों मां को भूल अपने विचारों पर पहले ही विराम लगा देता तो शायद कवि का विचार "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में है पानी"का खंडन अधूरा रह जाता।
जितेंद नाथ मिश्र
कदम कुआं पटना
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