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कुछ बैठ किनारे दरिया के

कुछ बैठ किनारे दरिया के|

कुछ बैठ किनारे दरिया के, गहराई नापा करते,
कुछ उतर दरिया में, उसकी थाह लिया करते।
कुछ रेत ढेर में तलाश रहे, शीपी शंख पत्थर,
कुछ गहराई में जाकर, हीरे मोती लाया करते।
कुछ दूरदृष्टा होते, काल के भाल को पढ़ लेते,
कुछ सम्मुख विपदा से भी, घबराया रोया करते।
कुछ निर्णय लेने में सक्षम, देख समय की धारा,
कुछ आरोपों का खेल, सच से मुँह मोड़ा करते।

अ कीर्ति वर्द्धन
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