मैं चुनाव हूॅं

मैं चुनाव हूॅं

मैं चुनाव हूॅं ,
मतदाता के‌ मूच्छ का ताव हूॅं ,
मैं चुनाव हूॅं ।
नाम हूॅं एक ,
मस्तिष्क हूॅं अनेक ,
मैं ही शहर व गाॅंव हूॅं ,
मैं चुनाव हूॅं ।
मतदाता का मति हूॅं ,
मतदान का मैं गति हूॅं ,
लोभ ईर्ष्यावश अभाव हूॅं ,
मैं चुनाव हूॅं ।
मतदान में छेड़छाड़ करता ,
दूराचार हेतु मारपीट करता ,
बाधा डालने का भी स्वभाव हूॅं ,
मैं चुनाव हूॅं ।
मतदाता का हूॅं मान सम्मान ,
किंतु मेरा भी कुछ अरमान ,
देखता अपना भी दाॅंव हूॅं ,
मैं चुनाव हूॅं ।
गिनती के दिन गिना जाता ,
अलग अलग मुझे चुना जाता ,
क्विंटल किलो व पाव हूं ,
मैं चुनाव हूॅं ।
अनेक षड्यंत्र बुना जाता ,
किंतु एक ही है चुना जाता ,
सस्ता महंगा मैं भाव हूं ,
मैं चुनाव हूॅं ।


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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