मेरे गीत मुझे लौटा दो .......

मेरे गीत मुझे लौटा दो .......

तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।


गाये थे जो संग तुम्हारे
मधुर क्षणों में
गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।


चन्दा की वह मधुर चाँदनी
छत पर जा जब बातें की थी,
चाँदनी, मुझको लौटा दो
मैं जी लूँगा।
तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।


अमुवा की वह छाँव घनी
पवन संग झुला झूले थे,
छाँव, मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।


तन्हाई में तिल -तिल मरना
और मिलन की इच्छा करना ,
तनहा पल मुझको लौटा दो
मैं जी लूँगा।
तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।


रखा था जब हाथ लबों पे
आँखों के दर्पण में चेहरा
दर्पण, मुझको लौटा दो
मैं जी लूँगा।
तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।


छुप कर मिलना, जग से डरना,
आकर मेरी बाहँ पकड़ना
डरने का वह भाव लौटा दो,
मैं जी लूँगा।
तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।


सावन की रिमझिम
पावों की छपछप,
छपछप का संगीत लौटा दो,
मैं जी लूँगा।
तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।


यादें- वादें, कसमे- रस्मे
झूठे- सच्चे सारे सपने
सब ले जाओ
मैं जी लूँगा।
तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।


गीतों को सपने सा सजाकर
फिर से गा लूँगा
तन्हाँ मैं आँसू पी लूँगा
मैं जी लूँगा।
तुम चाहती हो तुमको भूलूँ
मैं भूलूँगा
मेरे गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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