सर्दी आई ( बाल कविता )

सर्दी आई ( बाल कविता )

सर्दी आई सर्दी आई ,
संभलकर रह मेरे भाई ।
स्वेटर चादर ले बाहर निकलो ,
घर में रहो तुम ओढ़ रजाई ।।
कभी वर्षा ठंढ है बढ़ाती ,
कभी बादल भी मॅंडराते ।
ठंढक से बढ़ता कंपकंपी ,
स्वेटर कोट खूब हैं पहनाते ।।
ठंढ से खूब रहना बचकर ,
लापरवाही से होगे बीमार ।
सिर का दर्द बदन का दर्द ,
और चढ़ेगा तन में बुखार ।।
तुम भी बहुत पीड़ित होगे ,
मातापिता भी होंगे परेशान ।
मातापिता का कहना मानो ,
ठंढक से बचाव करें प्रदान ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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