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उम्र सड़सठ बीत गयी, अब अडसठ की बात है,

उम्र सड़सठ बीत गयी, अब अडसठ की बात है,

पहले जैसी ही अब भी, शरद पुर्णिमा की रात है।
तन्हाई में तुमसे मिलना, छिप छिप कर बातें करना,
कहाँ कहीं कुछ भूला हूँ, याद पहली मुलाक़ात है।
नहीं पता थी प्यार की बातें, नहीं इश्क़ का ककहरा,
देख तुम्हें कुछ होता था, वो धड़कन आज भी साथ है।
एक झलक पाने को दोनों, नित रोज़ बहाने गढ़ते थे,
कभी बदलना कॉपी पुस्तक, आज तलक सब याद है।
नहीं कहा मैंने तुमसे कुछ, न ही तुम कुछ कह पायी थी,
सिमट गये जो पल तन्हाई में, आज भी तेरी सौग़ात है।


डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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