अहं एवं आत्ममुग्धता मानवीय संबंधों के लिए अमर बेल सदृश्य घातक है

अहं एवं आत्ममुग्धता मानवीय संबंधों के लिए अमर बेल सदृश्य घातक है

अहं और आत्ममुग्धता दो ऐसे दुर्गुण हैं जो हमारे रिश्तों में स्नेह एवं सम्मान के भाव का भक्षण कर उनको सुखा सकते हैं। अहं व्यक्ति को यह विश्वास दिलाता है कि वह हमेशा सही होता है, जबकि आत्ममुग्धता व्यक्ति को दूसरों की भावनाओं की परवाह नहीं करने देती है। ये दोनों दुर्गुण रिश्तों में दरार डाल सकते हैं एवं उन्हें मृतप्राय कर सकते हैं।

अहं एक व्यक्ति को दूसरों की भावनाओं एवं विचारों को सुनने से रोकता है। अहं वाला व्यक्ति हमेशा यह सोचता है कि वह ही सही है और बाकी सब गलत हैं। इस कारण से वह दूसरों की बातों को सुनना नहीं चाहता है। वह दूसरों की राय को महत्व नहीं देता है। यह अहं हमारे रिश्तों में तनाव और विवाद पैदा कर सकता है।

आत्ममुग्धता व्यक्ति को दूसरों के प्रति संवेदनशील नहीं बनाती है। आत्ममुग्ध व्यक्ति दूसरों की भावनाओं की परवाह नहीं करता है। वह हमेशा अपने बारे में ही सोचता है। इस कारण से वह दूसरों को दुख पहुँचा सकता है। आत्ममुग्धता हमारे रिश्तों में विश्वास की कमी पैदा कर सकती है।

अहं और आत्ममुग्धता हमारे रिश्तों के लिए अमर बेल सदृश्य है। ये दोनों बुराइयाँ हमारे रिश्तों को जकड़ लेती हैं और उन्हें अमर बेल की तरह सुखा कर खत्म कर देती हैं। इसलिए, हमें इन बुराइयों से बचना चाहिए एवं हमें दूसरों के विचारों और भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। हमें दूसरों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। तभी हम अपने रिश्तों को मजबूत बना सकते हैं।

अहं और आत्ममुग्धता से बचने के लिए कुछ सुझाव :-

दूसरों के विचारों और भावनाओं को सुनें।

दूसरों के प्रति संवेदनशील बनें।

दूसरों की राय को महत्व दें।

दूसरों को दुख पहुँचाने से बचें।

दूसरों के साथ सम्मान से पेश आएं।

इन सुझावों को अपनाकर हम अपने रिश्तों को अहं और आत्ममुग्धता से बचा सकते हैं।

"सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
श्री हरि: शरणम्
पंकज शर्मा (कमल सनातनी) २० नवंबर २०२३
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