क्रोध नाम विनाश का
क्रोध विचारों से विचारों का द्वंद,होती है बुद्धि मलीन और मंद ।
जब विनाश नजदीक आता,
विवेक मर जाता गुस्सा आता।
क्रोध है वह तेज तेजाब ,
जो जिस बर्तन में रहता।
उसको धीरे-धीरे गलाकर,
उसको समूल नष्ट कर देता।
अनियंत्रित शब्दों के दावानल में,
रिश्ते भस्म हमें अकेले कर देता।
क्रोध हमें दंभी और क्रूर कर देता,
बुद्धि और शांति सब है हर लेता।
क्रोध हमारा सबसे बड़ा बैरी,
पल में हमारी मति देता मार।
मिली जीत को यह छीनकर,
बना देता है यह उसको हार।
क्रोध से मन विचलित होता,
और हमारा विवेक खो जाता।
सही-गलत का भेद नहीं करता,
और सबको नुकसान पहुंचाता।
जो समस्या का हल ढूंढते हैं,
वो कभी क्रोध नहीं करते हैं।
और वो शांति से बैठते हैं,
ठंडे दिमाग़ विचार करते हैं।
"इसलिए'
आप क्रोध कभी मत कीजिए,
'कमल' करता यह शाँति भंग।
आप शीतल मन नित राखिए,
यह जीवन में भरता है उमंग।
पंकज शर्मा कमल सनातनी
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