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एक दीप

एक दीप

हजारों दीप जलाते हो बाहर ,
एक दीप अंतर्मन जला लो ।
एक दीप ले आएंगी ये लक्ष्मी ,
अंदर वाह्य का तम भगा लो ।।
एक दीप ले ये आएंगी लक्ष्मी ,
तब घर में तेरे उजाला होगा ।
धन धान्य परिपूर्ण तुम होगे ,
जब ज्ञान गणेश डाला होगा ।।
एक ही दीप यह अंतर्मन का ,
बाहर भी उजाला ये देता है ।
अंदर बाहर यह उजाला देता ,
हर एक तम को विभेता है ।।
एक दीप अंतर्मन जला ले ,
लाखों दीप बाहर जल जाएंगे ।
अंतर्मन का ये दीप जलते ही ,
दीन दुःखी तुमसे पर जाएंगे ।।
घर अंदर बाहर किए सफाई ,
अपने अंतर्मन साफ कर लो ।
जो भी तेरे संग किए हैं बुराई ,
उन्हें एक बार माफ कर लो ।।
दीप लेकर ये आएंगी लक्ष्मी ,
दौड़कर स्वयं तेरे इस घर में ।
सफलता हर कामों में होगी ,
यश मिलेगा तेरे दोनों कर में ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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