अजनबी साथी
जन्म लेकर माॅं के गोद पला ,बड़े हुए तो बना लिए मित्र ।
मित्रों के संग ही खेला कूदा ,
जीवन गमकता जैसे इत्र ।।
शैशव गया तो बालपन आया ,
बालपन जाते आया किशोर ।
किशोर बीतते आई जवानी ,
गाॅंव मुहल्ले में हो गया शोर ।।
ईश्वर का होता कैसा विधना ,
न कोई परिचय न कोई पाती ।
अजनबी ही आता ले रिश्ता ,
समझ बुझ व देखकर थाती ।।
धीरे धीरे परिचय है बढ़ता ,
धीरे धीरे जले दीए की बाती ।
लेकर जाते बारात इकदिन ,
दो अजनबी बने जीवन साथी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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