दीपक

दीपक

बुझ गया एक और दीपक
जो था अभी तक जगमगाता
घर का आन बान और शान था
जो था किसी की मांग पर विराजमान
महाप्रयाण कर गया निःशब्द छोड़ कर
अब पंच तत्वों में मिलाने की तैयारी है
कहीं रूदन कहीं खुशी का आलम है
कहीं महाभोज कहीं महासमर की
तैयारी है ।
मरघट में अग्नि देने की बोली लगी है
कहीं श्वानों के बीच महासमर हो रहा है
कहीं अधजले शवों का महाभोज की
तैयारी है।
जितेन्द्र नाथ मिश्र
कदम कुआं
पटना।
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