ज्योति पर्व की संध्या
डॉ रामकृष्ण मिश्रज्योति पर्व की संध्या
आलोकित कर दे जीवन।
बरसे शान्ति शौर्य मधु- सुखमय
सुरभित हो तन- मन ।
आत्म दीप जाग्रत हो जाए
मिट जाए मृत छाया।
नवल ऊर्जा से संवाहित हो
दृढतर यश - काया।।
भावी समय स्वयं नत होकर
करे सुयश -अभिनंदन।।
जन- जन में मुकुलित हो
पीड़ित अभिलाषा के भाव।
कहीं किसी से कभी न
हो पाये हिंसक टकराव।
तिक्त- ऊष्म को भी मिल जाए
नव जीवन चंदन।।
जैसे दीप अमा को धोते
जग- मग करती रात
और स्वर्ण मांगलिक कलश- सा
लेकर आता प्रात ।।
उज्ज्वल धुली कल्पनाओं को
करें स्नेह वंदन।।
***********""१८रामकृष्ण
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