जीत
मुझको वो तुम ऐसा जीत ,मुझसे हो जाए तेरा प्रीत ।
तुम बन जाओ मेरे ये मीत ,
मैं बन जाऊं तेरा प्रिय मीत ।।
सृष्टि में आए एक बनकर ,
दुनिया का है एक ही रीत ।
मिलजुल हम एक ही रहेंगे ,
गाएं जीवन के एक ही गीत ।।
प्रेम सौहार्द उद्देश्य हो हमारा ,
नहीं करें हम किसीको चीत ।
जीवन सरल मधुर हो हमारा ,
जीवन में न आए कभी तीत।।
मीतता हो सुखद औ मधुमय ,
मधुर मिलन हो हमारा नीत ।
नीतिगत हो हमारा ये जीवन ,
जीवन में कभी न हो अनीत।।
दुःख सुख में भी सहारा बनेंगे ,
ग्रीष्म वर्षा या क्यों नहीं शीत ।
हॅंसते गाते जीवन ये कटेंगे ,
हॅंसते गाते जीवन जाएं बीत ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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