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किसी रंगोली में, खुशी सजायेंगे|

किसी रंगोली में, खुशी सजायेंगे|

(अर्चना कृष्ण श्रीवास्तव)
किसी रंगोली में, खुशी सजायेंगे,
कहीं झालर-दीये जलायेगे ,
मेरी आशा है, मेरे भाव हैं,
दीपोत्सव पर ,राम घर आयेंगे
रावण से युद्ध कर, सिया को लेकर के ।
सबके उम्मीद के, दीया को लेकर के ।
घर की मर्यादा को, प्राण- पण से निभा ,
प्राण जाये पर वचन न जाये,यही दुहरायेंगे ।
अब तो राम को घर के रावण से भी लडना होगा,
तीर की नोक अब , घरवालों पर भी पडना होगा ,
चीर तो शब्दों का शिकार हो गया,
कृष्ण की तरह कोई चीर भी गढना होगा !
दिवालिया हो गये हैं होठ स्वच्छ शब्दों से,
शारदा बैठ गयी है तख्त-ताज जिह्वा पर !
भिखारी हो गया अयोध्या पुरुषोत्तम बिन ,
आयेंगे राम क्या , दीपों के आर्त-आह्वान पर ?
कहीं शकुनि से आहत , यहाँ पर पाण्डव हैं,
कहीं मंथरा से आहत- आर्त अयोध्या है ,
हर लौ की आशा है, राम आयेंगे,
इसी आशा में, हर वर्ष दीप जलायेंगे ।
अपने देश के जन-जन के आशा के राम ,
अपने देश के हर दिल के अभिलाषा के राम ।
जरूर आयेंगे एक दिन, अयोध्या जिन्दा है,
राम का घर यहीं है, वो यहीं के बसिन्दा हैं ।
इस साल दीपोत्सव पर, यही कहना है,
राम तो राम हैं, हर दिल के वे ही गहना हैं ।
दुर्योधन भी यहीं था ,और यहीं धोबी भी रहा,
ये ऋषियों की धरा, यही पर योगी भी रहा ,
युद्ध की भूमि है, हर एक कदम लडाई है,
लौ जलता रहा है, आँधी लाख आई है !
दीपावली की हार्दिक- शुभकामनाएँ और बधाइयाँ !
जल रहे शब्दों की कडवाहट-
जला देना !
राम की राह में चलते रहेंगे हम सारे ,दीये की रोशनी, रावणों को क्या देना !!!
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