नन्हें दीपों से यहां,गया अंधेरा हार
तारों से है आज तो,जगमग सब आकाश।लेकिन मावस में करे,थल में दीप प्रकाश।।
द्वार-द्वार रंगोलियां,सजे हुए हैं गेह।
शेष नहीं कोना बचा,बरस रहा है नेह।।
सजे दीप की माल से,चमक रहे घर द्वार।
नन्हें दीपों से यहां,गया अंधेरा हार।।
बम फुलझडियां हंस रहे,हरसिंगार के फूल।
झालर छज्जे पर सजी,बिहसि रही है झूल।।
बेसक खूब छुड़ाइए,लड़ियों का बाजार।
दमघोटू फैले नहीं, किन्तु प्रदूषण यार।।
सजग पटाकों से रहें,करें न कोई भूल ।
कर्म सभी आओ करें,धरती के अनुकूल।।
लाई-गट्टे आ गये, खील-खिलौना संग।
लड्डू-पेड़ा फूल-फल,घर का बचपन दंग।।
लक्ष्मी जी के साथ में,गणपति करें किलोल।
माटी की हैं मूर्तियां,फिर भी लगता मोल।।
नये-नये कपड़े पहन,मना रहे त्योहार।
इक दूजे पर आज सब ,लुटा रहे हैं प्यार।।
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~जयराम जय
'पर्णिका' बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
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