मैं कौन हूॅं
अपनी ही धरा पर ,अपने ही घर में ,
रहता मैं मौन हूॅं ।
समझ नहीं आता ,
आज यह हमको ,
मैं पूरा या पौन हूॅं ।
मातपिता पत्नी बच्चे ,
भरे पड़े मगर ,
लगता मैं गौन हूॅं ।
निराश नहीं होता मैं ,
निज सोचा करता ,
जैसे मैं ही डाॅन हूॅं ।
लंबा परिवार मैं लंबा ,
फिर भी लगता जैसे ,
मैं ही तो बौन हूॅं ।
विचार का हूॅं मैं नेक ,
खूब चलाता निज विवेक ,
हृदय से बड़ा लाॅन हूॅं ।
फिर भी बड़ी दुनिया में ,
पता नहीं चलता ,
मैं आखिर कौन हूॅं ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com