इन सत्ता के गीधों के, साथी! मत जघन्य आखेट बनो।
चेतना स्वतंत्र त्याग कर अंधे पर-मत के मत चेट बनो।
सत्य-राम के आराधक के हन्ता के जयकार-कारियो !
लाना निमित्त हो राम -राज्य तो सुदृढ बद्धसंफेट बनो ।
नितान्त विगर्हित लज्जाकर यह सविता पर करना थूत्कार।
उन्मुक्त हृदय, ठंढे दिमाग से मानवता का मनन करो -
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