शांति से बड़ा सुख नहीं|
शांति से बड़ा सुख नहीं ,अशांति से बड़ा न दुःख ।
उपजता जैसा विचार है ,
वैसा ही निकसता मुख ।।
जैसा विचार है उपजता ,
वैसा ही उपजता है भूख ।
जैसा भूख यह उपजता ,
वैसा ही लेता वह रूख ।।
भला बुरा नहीं सोचता ,
कहाॅं हो जाती यह चूक ।
कहाॅं किससे क्या बोलना ,
जिसका होता नहीं तूक ।।
असीमित ही वह बोलता ,
नहीं रह सकता वह मूक ।
धाराप्रवाह ही है बोलता ,
नहीं सकता कभी रूक ।।
अंतर्कलह होता है घर में ,
नाहक विवाद बढ़ाता है ।
स्वयं भी मिलता मिट्टी में ,
औरों को भी मिलाता है ।।
आंखों में नींद आती नहीं ,
मन को मिलता न राहत ।
सज्जन चिंता में व्याकुल ,
दुर्जन को है यही चाहत ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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