" परिंदों की उड़ान"
हमारी उड़ान की सीमा नहींहम जहां चाहें, उड़ सकते हैं
हमारी मर्जी, हमारा आसमां
हम किसी के वश में नहीं हैं
उड़ते हैं हम हवाओं के संग
खोजते हैं अपना ठिकाना
पंखों में तो उड़ने की चाहत
लेकिन कोई ठिकाना नहीं
हम स्वतंत्र हैं, हम बेफिक्र हैं
हम जीवन का आनंद लेते हैं
चिंता नहीं है, किसी बात की
हम बस जीते हैं, हर पल को
परिंदे हम इस आसमां के
हम हैं अस्तित्व के प्रतीक
हम हैं आशा के प्रतीक
स्वछंदता तो है बस यहीं
अंधेरे की गहराईयों में
खोयी हुई मंजिल कहीं
हम खोजते है नीड़ कहीं
हम कहीं यह नज़र कहीं
चाँदनी की किरणों से
जब रोशन होता सफर
यहीं कहीं तो मैं बसा हूं
इन तरूवरों में मेरा घर
भटक रहे हैं बनकर राही
मंजिल कहीं, सफर कहीं
परिंदे हम इस आसमां के
शाम कहीं हैं, सहर कहीं
(पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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