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बच्चन की 'मधुशाला' परम चेतना की ओर संकेत करती है एवं भारत की स्त्री-चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं मृदुला सिन्हा:-डा अनिल सुलभ

बच्चन की 'मधुशाला' परम चेतना की ओर संकेत करती है एवं भारत की स्त्री-चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं मृदुला सिन्हा:-डा अनिल सुलभ 

  • जयंती पर साहित्य सम्मेलन में, कवि अर्जुन सिंह की तीन पुस्तकों का हुआ लोकार्पण, दी गई काव्यांजलि।
पटना, २७ नवम्बर। जीवन के प्रति सकारात्मक राग, प्रेम और दर्शन के कवि हरिवंश राय बच्चन की 'मधुशाला' परम चेतना की ओर एक सूक्ष्म संकेत है। वह कोई मद्यपों का स्थल नहीं, अपितु आनन्द के शास्वत स्रोत 'ब्रह्म' है। बच्चन हिन्दी-काव्य में छायावाद-काल के बाद एक नूतन और मृदुल-स्पर्श लेकर आए। उन्होंने मनुष्यता को जीवन-रस प्रदान करने वाले श्रेष्ठतम भाव, 'प्रेम' को नई भाषा दी। उनकी रचनाओं में जीवन के प्रति अकुंठ श्रद्धा, उत्साह और सकारात्मकता दिखाई देती है। वे अपने समय के सबसे लोकप्रिय कवि थे।
यह बातें सोमवार को साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयन्ती-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने, गोवा की राज्यपाल रह चुकी विदुषी लेखिका स्मृतिशेष डा मृदुला सिन्हा को स्मरण करते हुए कहा कि, मृदुला जी भारत की स्त्री-चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी लेखनी से प्रसूत हुई अद्भुत कृति सीता की आत्म-कथा 'मैं सीता हूँ', में भारत की नारी-चेतना अपनी पूरी ऊर्जा के साथ अभिव्यक्त हुई है। उनका सारस्वत व्यक्तित्व और आत्मीय व्यवहार प्रत्येक मिलने वाले के लिए चिर-स्मरणीय हो जाता था।
इस अवसर पर, कवि अर्जुन प्रसाद सिंह की तीन पुस्तकों, 'भगवान का महत्त्व', 'दिव्य दृष्टि का पारि' तथा 'साहित्य का संदेश' का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए, वरिष्ठ कवयित्री श्रीराम तिवारी ने कहा कि तीनों पुस्तकें आध्यात्मिक दृष्टि से चिंतन कर लिखी गयीं सार्थक साहित्य हैं। ये एक अद्भुत साधक हैं। अपनी पुस्तकों के प्रकाशन हेतु श्रम-पूर्वक धन-संग्रह करते हैं। पुस्तक छपाकर निःशुल्क वितरण करते हैं। साहित्य का इस तरह से कार्य विरले लोग करते हैं।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी और वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा पुष्पा जमुआर, वरिष्ठ कवयित्री ऋता शेखर 'मधु',कुमार अनुपम, प्रो सुशील कुमार झा तथा बाँके बिहारी साव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ जय प्रकाश पुजारी ने वाणी-वंदना से किया। लोकार्पित पुस्तकों के कवि अर्जुन प्रसाद सिंह, डा प्रतिभा रानी, वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, कमल किशोर कमल, सदानन्द प्रसाद, सच्चिदानन्द किरण, ई अशोक कुमार, चितरंजन लाल भारती, डा पंकज कुमार सिंह, पृथ्वी राज पासवान, आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की संगठनमंत्री डा शालिनी पाण्डेय ने, मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। वरिष्ठ प्रकाशक नरेंद्र कुमार झा, नन्दन कुमार मीत, अल्पना कुमारी, मृत्युंजय कुमार, रंजन कुमार अमृतनिधि, दुःख दमन सिंह, मनोज कुमार, अमरेन्द्र कुमार, डौली कुमारी, कुमारी मेनका आदि सुधीजन उपस्थित थे।
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