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"ज़िन्दगी की फ़िल्म"

ज़िन्दगी की फ़िल्म

ज़िन्दगी की फ़िल्म मुकम्मल न हो सकी,
वो सीन कट गया जो कहानी की जान था।


वो सीन जिसमें दो दिल मिले थे,
वो सीन जिसमें दो सपने मिले थे।


ज़िन्दगी के वो पल अधूरे रह गए,
जीवन के वो सपने अधूरे रह गए।


ज़िन्दगी की फ़िल्म अधूरी रह गई,
वो जिन्दगियां भी अधूरी रह गईं।


खुशी के पल थे, गम के पल थे,
प्यार के पल थे, विरह के पल थे।


हर सीन में थी एक कहानी,
हर कहानी में थी एक ज़िंदगी।


लेकिन वो सीन कट गया,
जो कहानी की जान था।


उस सीन में थी एक मुस्कान,
उस मुस्कान में था एक ख़्वाब।


उस सीन में थी एक आस,
उस आस में थी एक उम्मीद।


जिंदगी की फिल्म का वो सीन कट गया,
और ज़िन्दगी की फ़िल्म अधूरी रह गई।


अब तो बस यादें ही हैं,
और पल-पल का दर्द।


कभी - कभी मेरी आँखें भर आती हैं,
और दिल में एक ख़्वाब जग उठता है।


ख़्वाब वो कि वो सीन दोबारा आ जाए,
और ज़िन्दगी की फ़िल्म पूरी हो जाए।


लेकिन "कमल" ये ख़्वाब सिर्फ़ ख़्वाब है,
और ये ज़िन्दगी की फ़िल्म अधूरी रह गई।


कौन जाने "कमल" वो सीन कब बन पाएं,
कौन जाने वो कहानी कब पूरी हो पाएगी।


कौन जाने वो पल - क्षण कब पूरे हो पाएँगे
कौन जाने वो हंसी सपने कब पूरे हो पाएँगे


कौन जाने वो जिंदगियाँ कब पूरी हो पाएँगी,
वो सीन कट गया जो कहानी की जान था।

पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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