मय में डूबे
मय में डूबे हुए, कौन सी खुशी ढूंढ रहे हैंवह मस्ताने, डूब नशे में मस्ती तलाश रहे हैं
मय का नशा है, उनका एकमात्र आधार
इस नशे में, अपना अस्तित्व ही भूल रहे हैं
कभी इधर कभी उधर देखो पीने का असर
फिर लड़खड़ाकर गिर पड़े, पैर पड़े जिधर
कभी कभी तो नशा ऐसे परवान चढ़ता
पैर होते हैं सड़क पर मुंह नाली में पड़ता
अंगूर की बेटी से मोहब्बत का है यह फल
कैसे हो सकता बिना परिणाम दिए निष्फल
उनके लिए, दुनिया का कोई मायने नहीं है
बस मय में डूबे, अपना सकून तलाश रहे हैं
उनकी तलाश में, आत्मा तक खो जाती है
इस खोज में, अपना जीवन नष्ट कर देते हैं
लेकिन, क्या वे कभी सकूं को पा सकेंगे?
यह तो वक्त बताएगा, कि उनका क्या होगा
लेकिन, एक बात तो निश्चित है अंततः वह
इस मय में डूबे हुए, अपना जीवन ही खो देंगे
स्वरचित एवं मौलिक पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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