तुलसी-विवाह
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मार्कण्डेय शारदेय
हमारी संस्कृति में तुलसी पौधे के रूप में देवी हैं, विष्णुप्रिया हैं।जैसे सयानी हुई बेटी को हम सुयोग्य वर के साथ विवाह करते हैं, वैसे ही पालित-पोषित सयानी तुलसी का भी विष्णु भगवान के साथ विधानतः वैवाहिक कृत्य का शास्त्र-निर्देश है।इसके लौकिक-पारलौकिक फल भी बहुत बताए गए हैं।
शास्त्रीय मत से त्रिवर्षीया तुलसी विवाह-योग्य होती हैं।इनके विवाह में वे ही मुहूर्त ग्राह्य हैं, जो ज्योतिष में बताए गए हैं।उत्तरायण को उत्तम स्थान दिया गया है, पर दक्षिणायन में भीष्मपंचक को, यानी कार्तिक शुक्ल एकादशी से कार्तिकी पूर्णिमा तक की पाँचों तिथियों को भी पूरी मान्यता है—
“सौम्यानये प्रकर्तव्यं गुरु-शुक्रोदये तथा।
अथवा कार्तिके मासि भीष्म-पंचदिनेषु च”।।
इसीलिए हमारे यहाँ प्रायः देवोत्थान (प्रबोधिनी ) एकादशी को तुलसी-विवाह का अधिक प्रचलन है।कारण यह भी है कि इस दिन सभी व्रत-उपवास में रहते हैं।अन्य दिन करने में फिर से उपवास करना पड़ता है।कल दिनांक 23.11.023 (गुरुवार) को प्रबोधिनी एकादशी है, शाम 5.23 से वैवाहिक नक्षत्र उत्तरा भाद्रपदा आ रहा है।इसलिए कल तुलसी-विवाह किया जा सकता है।हाँ; चूँकि रात्रि 8.21 तक मृत्युलोक की भद्रा है, इसलिए रात्रि 8.30 के बाद से 9.10 के भीतर विवाह-विहित मिथुन लग्न में कर्मकाण्डीय विधि प्रारम्भ करना सर्वोत्तम रहेगा।
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