सुनों कमीनों
---:भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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अरे सुनों कमीनों
कभी किसीका जमीर
न ललकारो न छीनों
नहीं तो जो वो गया उतर
जिस दिन अपने पर
भागने का भी मौका न देगा
और तुम ढूंढते रह जाओगे
जिंदगी भर... ठहर...... ठहर
पर नहीं मिलेगा उत्तर
चाहे लाख घडी फिर गीनों
तुम बनते हो फरकोल
जबकि हो पुरा बकलोल
छिप नहीं पा रही है सच्चाई
जो तुम ओढ लिए हो खोल
हमें डंसने को दिखाते हो
तुम अपना इतिहास भूगोल
जबकि सब जान रहे हैं
कि तेरी औकात है डवांडोल
प्रत्यक्ष है तेरा काल तीनों
बना लिए हो बहुत से आस्तीन
और उपर से चाल चलन रंगीन
पर कौन फसेगा इसमें
ये तेरा अपराध है बड़ा संगिन
इतना मासूम मत बनों
तुम पाल रखे हो अपने आस्तीनों में सांप
इस बात को सब गया है भांप
तुमको भी होगा देख लेना कभी
इस निंद्य और घृणित कर्मों पर
खुद हीं तुमको परिताप तमाशबीनों
छोडो ये सब द्वेष का दंगा
सज्जन बनों रे लफंगा
एक दिन मिल जायेगें राम
एक दिन होगा जब निर्मल मन चंगा
हो एक........दो....... तीन.......
अपना फाडकर आस्तीन
रहना बेफिक्र
जब भी आए कहीं इसका जिक्र
नये दौर के कर्महीनों
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वलिदाद, अरवल(बिहार)८०४४०२.
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