वर्ष 2023 की विदाई
जा रहे हो तुम वर्ष 2023 ,केसे करूॅं मैं तेरी विदाई ।
भले बुरे में भी साथ रहे तुम ,
नहीं होगी तेरी ये भरपाई ।।
बहुत ही दुःख दिया तुमने ,
किंतु सुख भी तुम दिए थे ।
ज़ख्म भी गहरे दिए थे तुमने ,
मरहम पट्टी भी तुम किए थे ।।
जाते जाते जो जख्म दिए हो ,
क्या मरहम पट्टी कर पाएगा ।
आज तेरी अब है यह विदाई ,
अब कैसे कर्म तू निभाएगा ।।
जख्म आज जो दिया है तूने ,
जख्म देकर ही अब जाएगा ।
जख्म का ईलाज करेगा वही ,
जब वर्ष 2024 ये आएगा ।।
कभी तेरा पलड़ा होगा भारी ,
कभी तू भी झूस रहा होगा ।
जब भी हुई है वर्ष की विदाई ,
वह दिवस फुस रहा होगा ।।
निकलेगा जब तू घर से बाहर ,
वर्ष 2024 भी घुस रहा होगा ।
होगी दोनों की क्षणिक मिलन ,
अवश्य निशा पूस रहा होगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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