भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब के द्वारा बनवाया पुण्यार्क सूर्य मंदिर मगध के 5 सूर्य मंदिरों में पुण्यार्क सबसे श्रेष्ठ है , यहाँ स्थापित है अष्टदल सूर्य यंत्र :- कमलेश पुण्यार्क “गुरूजी”

भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब के द्वारा बनवाया पुण्यार्क सूर्य मंदिर मगध के 5 सूर्य मंदिरों में पुण्यार्क सबसे श्रेष्ठ है , यहाँ स्थापित है अष्टदल सूर्य यंत्र :- कमलेश पुण्यार्क “गुरूजी”

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बिहार के मगध क्षेत्र में कई बेहद प्राचीन सूर्य मंदिर हैं। इनके स्थापना की कहानी भी बहुत रोचक है। इन मंदिरों में सबसे खास पटना जिले के पंडारक में स्थित पुण्यार्क मंदिर है। दरअसल, यह एकमात्र सूर्य मंदिर है जो, गंगा के तट पर स्थित है । छठ महापर्व पर यहां दूर-दूर से हजारों भक्त पहुंचते हैं। यहां 'पुण्यार्क सूर्य महोत्सव' भी किया जाता है। मान्यता है कि पुण्यार्क मंदिर में छठ पूजा करने से चर्म रोग दूर होता है।

मंदिर की स्थापना की कहानी क्या है?

मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना भगवान श्रीकृष्ण और उनकी एक पटरानी जांबवंती के पुत्र साम्ब ने की थी। ऐसा उन्होंने एक श्राप से छुटकारा पाने के लिए किया था। कहानी ये है कि श्रीकृष्ण की पटरानी जांबवंती बहुत सुंदर थी, इसलिए उनसे हुए पुत्र साम्ब भी अति सुंदर थे और इस बात का उन्हें घमंड हो गया। इसी घमंड में साम्ब ने देवर्षि नारद का अपमान कर दिया था।
नारद ने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण को यह झूठी बात बताई कि साम्ब का उनकी गोपियों के साथ प्रेम संबंध है। नारद ने धोखे से साम्ब को गोपियों के साथ जल क्रीड़ा करने के लिए भेज दिया और कृष्ण को यह दृश्य दिखा भी दिया। इसी से क्रोधित हुए कृष्ण ने साम्ब को श्राप दिया, जिसकी वजह से उन्हें कुष्ठ रोग हुआ और सौंदर्य नष्ट हो गया।

कुष्ठ रोग खत्म करने के लिए मिला उपाय

साम्ब ने बाद में जब नारद से क्षमा याचना की तो उन्होंने रोग खत्म करने का उपाय बताया। इसके लिए उन्हें बारह सालों तक सूर्य की उपासना करनी थी और बारह स्थानों पर सूर्य मंदिर की स्थापना करनी थी।

12 अलग-अलग जगहों पर सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया
कहा जाता है कि एक बार नारद मुनि की नजर राजा शाम्ब पर पड़ी। राजा शाम्ब के इस विकृत रूप को देखते ही नारद मुनि काफी दुखी हुए और उनसे इसका कारण पूछने लगे। पूरी व्यथा सुनने के बाद उन्होंने राजा शाम्ब को इस श्राप से मुक्ति दिलवाने का वचन दिया। नारद मुनि इसके लिए भगवान श्री कृष्ण के पास जाकर उनकी आराधना की और उनसे आग्रह किया कि आप इस श्राप से मुक्ति का रास्ता बताएं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए शाक्य द्वीप से वैध के साथ-साथ सूर्य उपासक ब्राह्मणों को वहां बुलवाया। तब वहां के ब्राह्मणों ने कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए उन्हें 12 ग्रहों के आधार पर प्रत्येक माह एक वर्ष तक 12 अलग-अलग जगहों पर सूर्य मंदिर का निर्माण कराकर वहां पूजा-अर्चना करने की सलाह दी। इसके बाद राजा शाम्ब ने 12 जगहों पर 12 राशि के आधार पर सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था। यह सभी 12 सूर्य मंदिर 12 जगहों पर अर्क स्थान के रूप में प्रतिष्ठित है।

1. कोणार्क- उड़ीसा

2. ओलार्क (उलार) - दुल्हिन बाजार, पटना
3.देवार्क (देव) - औरंगाबाद
4.पुण्यार्क- पण्डारक
5.औगार्क- औगारी
6.लोलार्क-काशी
7.मार्कण्डेयार्क- कन्दाहा, सहरसा
8.कटलार्क- कटारमल उत्तराखंड
9.बालार्क- बड़गांव
10.चानार्क- चंद्रभागा नदी के किनारे
11.मोढ़ेरार्क- गुजरात में पुष्पावती नदी के किनारे
12.आदित्यार्क - वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चिनाब नदी के किनारेइन कहानियों के आधार पर पुरातत्ववेताओं ने सभी मंदिरों की खोज की, लेकिन 11 ही मिले। इनमें से पांच मंदिर तो मगध क्षेत्र में ही हैं। इनके नाम हैं- नालंदा जिले मे बड़गांव का सूर्य मंदिर (बड़ार्क), ओंगरी का सूर्य मंदिर (ओंगार्क), औरंगाबाद जिले में देव का सूर्य मंदिर (देवार्क), पटना जिले के पालीगंज में उलार का सूर्य मंदिर (उलार्क) और बाढ़ में पंडारक का सूर्य मंदिर (पुण्यार्क)।

मंदिरों की विशेषताएं क्या-क्या हैं

इन सभी प्रसिद्ध और पौराणिक सूर्य मंदिरों में सबसे पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित पुण्यार्क को ही माना जाता है। मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में स्थापित अष्टदल सूर्ययंत्र के अलावा काले रंग के पत्थर से बनी सूर्य की एक प्राचीन प्रतिमा है। प्रतिमा के हाथ कमर तक हैं और दोनों हाथों मे पद्म है। सिर पर त्राण, कमर में कटार, गले में माला और पैरों में बूट जैसे परिधान हैं। मूल प्रतिमा के अगल-बगल में दंड, पिंगल, देवियां, अनुचर, अनुचरियां, सारथी हैं। प्रतिमा के ऊपर गंधर्व की आकृति बनी है। पुण्यार्क सूर्य मंदिर पटना से ८० किलोमीटर दूर पंडारक गांव में गंगा के तट पर है। पुण्यार्क को पुनारख और पंडारक भी कहा जाता है।
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