शब्द- अक्षर,, प्राण- तन समरूप होते हैं।
डॉ रामकृष्ण मिश्र
शब्द- अक्षर,, प्राण- तन समरूप होते हैं।
कला के छू हाथ वाक्य अनूप होते हैं।।
रिक्तियों में पूर्णता संभाव्य कर जाते,
अकर्मण्यों के लिए सद् काव्य कर जाते।
जो परिस्थिति की व्यथा को अंश दे अपना
वाङ्गमयी शुचि पीठिका के भूप होते हैं।।
बबूलों में प्राण - रक्षा मंत्र भर सकते,
सौरकण को शौर्य भेदी यंत्र कर सकते।
निनादित उन्माद में भी गीति का आनंद
प्रतिष्ठापित करें वही अनूप होते हैं।।
अंधता का सूर्य कोई ही उदय लेता
गहनतम नैराश्य को आशा किरण देता।।
राह है बैठी प्रतीक्षा में उसी रवि की
जो ठिठुरती शीत ऋतु की धूप होते हैं।।
*********रामकृष्ण
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