Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

संभावनाएँ ठिठुर कर जो सो रहीं

संभावनाएँ ठिठुर कर जो सो रहीं|

-- डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
संभावनाएँ ठिठुर कर जो सो रहीं,उनको जगाओ।
आग की लपटें जो ठंढी हो रहीं, उनको जगाओ।
हर नफस है आह की ही तर्जुमानी बेकसर,
हसरतें चुपचाप सो कर रो रहीं, उनको जगाओ।
रात कब की ढल चुकी, हम सो रहे उन्माद में ,
तमन्नाएँ ज़िन्दगी की खो रहीं, उनको जगाओ।
परछाइयाँ जिनकी नजर में घूमतीं हर वक्त
रात को जो आँसुओं से धो रहीं, उनको जगाओ।
ताइर के जाते ही नशेमन खूबसूरत जल गया, राख में चिनगारियाँ बच जो रहीं, उनको जगाओ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ