पत्रकारिता का दोहरा चरित्र

पत्रकारिता का दोहरा चरित्र

कांटेदार वृक्षों में बबूल जैसा,
सभी जानवरों में सांड जैसा,
रिश्वतखोरों में थानेदार जैसा,
कलमजीवियों में पत्रकार जैसा।

शुभ से अधिक ये अशुभ में हाजिर,
गोली चले, हत्या हो या बलात्कार,
छापा, भ्रष्टाचार हो या बिकते नेता,
रवि,कवि से पहले पहुंचे पत्रकार।

पहले तो ताने, फिर पैसे और शोहरत,
राजनीति,भ्रष्टाचार ने बदल दी तस्वीर,
अब तो पत्रकार बनकर रह गए हैं बस,
कार, कोठियां और रिश्वत की ये खेती।

अधिकतर पत्रकार है बेपैंदी का जीव,
नमस्कार को ही ये मानता है पुरस्कार,
नेताओं का प्यार ही है इनका कर्मफल,
सत्ताधारी पार्टियों का होता यह चारण।

बड़ी-बड़ी महफिलों में हो ख्याति,
कलक्टर या मंत्री से दुआ सलाम,
माइक है पर समाचार पत्र नहीं,
बुर्जुआ पत्रकारिता का ये है नाम।

सत्ता विरोध की इस अग्नि में पत्रकार,
राजदीप , अजीत, पुण्य, रवीश बनते,
कभी अर्नब, रुबिका, रजत एवं सुधीर,
बन रहे हैं इन सत्तारूढ़ों का मुखपत्र।

एक समय होता था जब पत्रकार था,
समाजवाद का बहुत बड़ा मसीहा,
पर देखो हाय आज तो बन गया है,
पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली।

एक समय जब होता था पत्रकार,
जनहित की वकालत करने वाला,
आज बना निज हित साधने वाला,
जनहित को नेपथ्य में रखने वाला।

ऐसा नहीं, इनकी उपयोगिता तो है ज़रूर,
गलत को सही, सही को गलत ये बनाते हैं,
भोली-भाली जनता को करते हैं दिग्भ्रमित,
भाषण-वीर और शब्दों के यह हैं जादूगर।

अगर आदर्शवाद का संसार में हो टोटा,
चंद सिक्कों में मिलती है इनकी सेवा,
बातों में शातिरता से आदर्श घोलते हैं,
इनके रहते आदर्शवाद का अंत नहीं होता।

पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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