भाई उसको बनाकर भी जो बचा सकी ना लाज

भाई उसको बनाकर भी जो बचा सकी ना लाज

भाई उसको बनाकर भी जो बचा सकी ना लाज ,
देखो कितना गिर चुका है अपना सभ्य समाज ।
कुछ रिश्ते नाते हैं जिसकी नारी देत दुहाई ,
वहशी और आततायियों को पड़ता नहीं सुनाई ।
इन कामान्धों को केवल नारी शरीर है दिखता ,
जितना धर्म सिखाओ पर,इनका मन नहीं सिखता।
सजा दिलाना, ज्ञान बांटना, इनके लिए तमाशा है ,
वहशी लोगों से समाज को सोचो कितना निराशा है ।
नारी का भय इस समाज से क्या कभी उबर पाएगा ,
हवसी घाव मिला है जिनको, क्या कभी वो भर पाएगा । 
 जय प्रकाश कुंअर
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