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लड़कियां तब और अब

लड़कियां तब और अब

पहले की लड़कियां होती थी अनपढ़ गंवार ।
पर भरा रहता था उनमें भारतीय संस्कार ।।
लड़की जब ब्याह कर ससुराल जाती थी ।
दोनों परिवारों के लिए आदर्श बन जाती थी ।।
एक पिता माता को छोड़ कर वो जाती थी ।
ससुराल में पति संग माता पिता भी पाती थी ।।
नया परिवार संग रंग खुब जमता था ।
अब वे सारे अपने थे मन उन्हीं में रमता था ।।
सारी उम्र खुशी खुशी ससुराल में कट जाती थी ।
कभी किसी कड़वाहट की महक नहीं आती थी ।।
आज की लड़कियां न जाने कैसा शिक्षा पाती हैं ।
अपनापन नहीं होता है जब ससुराल आती हैं ।।
सास ससुर मां बाप कोई नहीं , केवल पति अपना है ।
सारे परिवार को अपना सोचना यह अब सपना है ।।
सास ससुर संग अनबन रोज चलता रहता है ।
केवल पति ही उनका परिवार है , मन उनका कहता है ।।
बाल बच्चे होते ही अलग उनका परिवार है ।
सास ससुर छोड़ पति पत्नी और बच्चे ही उनका संसार है ।।
सारा संस्कार धीरे-धीरे अब उजड़ गया है ।
गंवार से शिक्षित होते ही लड़कियों का भारतीय संस्कार मर गया है। जय प्रकाश कुंअर
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